“आधुनिकता का प्रभाव: संस्कारों में होता आभाव” 

शिवानी गुप्ता ( शिवी ) प्रदेश अध्यक्ष प्रतिध्वनि एक गूंज

“आधुनिकता का प्रभाव: संस्कारों में होता आभाव”

“-आधुनिकता का प्रभाव आज हमारे जीवन शैली पर तो पड़ा ही है |साथ हमारे संस्कारों पर गहराई से पड़ रहा है |

आज कि पीढ़ी आधुनिक जीवनशैली को अपनाते हुए |अपने नैतिक मूल्यों और परंपराओं से दूर होती जा रही है| जबकि दोनों ही हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं |

“”-आधुनिकता अगर शरीर है तो संस्कार आत्मा है “..

“जहां आधुनिकता नई सोच ,नई तकनीक और समयानुकूल जीवन शैली के माध्यम से लोगों का रहन-सहन, व्यवहार और सोचने का तरीका बदल रहा है |वही संस्कार हमारे जीवन कि जड़े हैं |ये हमे मानवीय मूल्यों जैसे सत्य अहिंसा, करुणा, बड़ो का सम्मान ,परिवार का महत्व और समाज में जिम्मेदारी का बोध कराती है |

“-यदि आधुनिकता आगे बढ़ना सिखाती है तो संस्कार हमारे जीवन का दर्पण है |..

“-आधुनिकता शिक्षा ,समानता विज्ञान और प्रगतिशीलता कि परिभाषा है जिसके कारण अंधविश्वास, रूढ़िवादी विचारधारा और कुरीतियों का नाश हुआ और एक नव समाज का निर्माण हुआ लेकिन कहीं ना कहीं आधुनिकता ने पारिवारिक और सामाजिक संस्कारों को भी कमज़ोर किया है |संयुक्त परिवारो का विघटन ,बड़ो के प्रति सम्मान में कमी ,भौतिक सुख सुविधाओं कि दौड़ और पाश्चात्य संस्कृति कि अंधी नकल हमारे संस्कारों को प्रभावित कर रही है आज का अधिकांश नवयुवा अपने संस्कारों, संस्कृति ,सभ्यता को कम महत्व दे रहा है |जो कि एक सभ्य समाज के लिए ठीक नहीं |

“-संस्कार और आधुनिकता का संतुलन आवश्यक है| ये एक दूसरे के विरोधी नहीं है

“-आवश्यकता इस बात कि है कि हम आधुनिक विज्ञान और तकनीक सोच को अपनाते हुए अपने संस्कारों और संस्कृति का संरक्षण करे तभी जीवन प्रगति और मूल्यों का संतुलन बना रहेगा इसलिए हमारे जीवन में दोनों का महत्वपूर्ण स्थान है आधुनिकता हमे नए रूप में जीवन जीना सिखाता है तो संस्कार हमे उस रूप को आदर्श बनाकर आदर्शवादी इंसान के रूप में निखारता है एक सभ्य संस्कारी सज्जन व्यक्ती बनाकर जीवन को सार्थक बनाता है

 

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