कानपुर में जन्मे रामचरन लाल निषाद का जीवन संघर्षमय रहा

सन 1925 ईस्वी में हिंदू संगठन के जरिये उन्होंने समाज में सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्रांति लाने के लिए प्रयास किया|

 

स्वतंत्र प्रबोध ब्यूरो मैनपुरी

 

 

मैनपुरी /करहल | स्वर्गीय बाबू राम चरनलाल निषाद का जन्म मोहल्ला ग्वाल टोली, खलासी लाइन, कानपुर में एक मजदूर बस्ती में 15 सितम्बर सन् 1888 ई. को हुआ था । इनका जन्म इनकी मौसी के घर हुआ था। वह परिवार भी इतना गरीब था कि उन्होंने कर्ज लेकर इनकी माता श्रीमती मूला देवी के लिए पथ्य तथा दवाई का इन्तजाम किया था। इनके पूर्वज बरौलिया-डालीगंज,लखनऊ के निवासी थे। इसलिए माता इनको लेकर अपने गाँव चली आयीं और राम चरण का बचपन गाँव में ही बीता था। वे बरवलिया में नदी किनारे एक झोपड़ी में रहने लगी। बालक की पढ़ाई में इनके पिता कोई सहायता करने लायक नहीं थे और न करते ही थे। 1895 ई० में जब बालक सात वर्ष का हुआ तब स्कूल में बिठा दिया गया। वे दूसरे घरों में चक्की पीसकर बालक को पढ़ाने लगी । बालक होनहार था और उसने म्युनिसिपल बोर्ड की लालटेन के नीचे पढ़-पढ़ कर आठवाँ दर्जा पास कर लिया। 1902 ई० में धनाभाव के कारण रेलवे के आडिट कार्यालय में 12 रुपये मासिक पर नौकरी करने लगा।

एक दिन की बात है जब इनका अधिकारी इनसे कुछ पूछ-ताछ करने लगा, जिस पर बाबू रामचरण निषाद उनसे बहस करने लगे। अधिकारी नाराज होकर कहने लगा कि ‘नौकरी करना है तो करो, बहस करना है तो वकालत करो जाकर।’ इस बात से इनको बहुत चोट लगी और इन्होंने 1908 ई.में नौकरी छोड़ दी तथा बच्चों को घर पर पढ़ाने लगे और अपनी आगे की पढ़ाई जारी कर दिया। इन्होंने शार्ट हैन्ड व टाइप राइटिंग की परीक्षा प्राइवेट क्रिश्चियन कॉलेज, लखनऊ से पास कर लिया और प्राइवेट हाई स्कूल परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर ली। इनके नाना कन्हई मल्लाह ही जब-तब इनकी मदद करते थे। 1912 ई. में रामचरण निषाद ने बीए की परीक्षा पास कर ली और एल. एल. बी. की शिक्षा लेने इलाहाबाद गये, जहाँ पढ़ाई के साथ बच्चों को पढ़ा कर कुछ खर्च माँ को भेजते थे तथा स्वयं एक समय खाकर गुजर करते थे। उन्होंने अन्त में एलएलबी परीक्षा 1914 ई. में पास कर ली ।

आप संस्कृत के भी अच्छे विद्वान हो गये थे और लखनऊ आकर वकालत करने लगे तथा शीघ्र ही अपनी मेहनत व योग्यता के बल पर चीफ कोर्ट अवध के चोटी के वकीलों में शामिल हो गये। इसी समय लखनऊ के बरौलिया, देव नगर, कुतुबपुर, गोवार का पुरवा तथा मार्टिन पुरवा आदि की सारी जमीन को सरकार ने नजूल करार देकर कार्यवाई शुरू कर दी। यहाँ अधिकतर दलित पिछड़े वर्ग के निवासी थे, जो स्वयं सरकार से मुकदमा नहीं लड़ सकते थे। हमारे एडवोकेट साहेब अपना पैसा लगाकर मुकदमा लड़े और जीत गये, जिससे उन्तालीस मोहल्लों की जमीन अधिकतर वहीं के निवासियों की हो गयी। इसके बाद इन्होंने मस्ता चमार को एक सेठ की हत्या के झूठे मुकदमे से बचाया और एक पैसा उससे नहीं लिया था। वे गरीबों के मुकदमें हमेशा बिना फीस के करते थे।

देश में इस समय आर्य समाज तथा स्वराज्य पार्टी का जोर था। इन दोनों संघटनों में हमारे चरित्र नायक ने बड़ी लगन से कार्य किया था। कांग्रेस के अमृत-सर के अधिवेशन में निषाद सभा की ओर से बाबू प्यारे लाल जी और महादेव लाल जी सदियापुर को भाग लेने 1920 में भेजा गया था। किसान सभा की स्थापना जब मदन मोहन मालवीय जी ने किया था तब 1918 ई. में उन्होंने सारे दलितों को इसमें शामिल होने की अपील की थी। इन दोनों संगठनों में बाबू रामचरण निषाद ने जातिवाद का बोल वाला पाया । 1925 ई. में उनकी भेंट स्वामी बोधानन्द जी से हुई और वह इन संघटनों से अलग हो गये और वह इस निश्चित मत के हो गये कि सवर्ण हिन्दुओं द्वारा संचालित कोई भी दल शूद्रों का भला नहीं कर सकता; ‘दलितों को स्वयं ही गुलामी के विरुद्ध लड़ाई लड़नी पड़ेगी’।

इन आदि हिन्दू नेताओं ने सवर्णों के सुधारक नेताओं से साफ कहा कि पहले 99 प्रतिशत अपने अनुयायियों को ठीक करें, जिनमें अब भी बड़ी जाति में पैदा होने का अहंकार मौजूद है। फिर इनके साथ दलित वर्ग कैसे सहयोग कर सकता हैं। आपकी खोज थी कि सदियों पहले किसान और जमींदार जाति के आधार पर बनाये गये थे और किसानी और दूसरों की सेवा का कार्य शूद्रों को दिया गया था। 1925 ई में आदि हिन्दू संगठन के जरिये इन्होंने समाज में सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्रांति लाने की कोशिश की थी। आर्य समाज के बारे में इनका मत था कि ‘वर्ण व्यवस्था को बनाये रखने की कोई आवश्यकता ही नहीं है’। दलितों में कार्य करने के लिये इन्होंने निषाद प्रिंटिंग प्रेस कायम किया तथा वहीं से आदि हिन्दू समाचार पत्रिका निकलती थी जिसके सम्पादक मंडल में सर्वश्री डा.आरएस जैसवारा, श्री एसडी चौरसिया, एडवोकेट तथा जीएस राजपाल थे। 1925 में ही आप आरएस जैसवार, शिवदयाल चौरसिया, रामप्रसाद अहीर, राजाराम कहार, जिस राजपाल आदि के साथ मिलकर बैकवर्ड फेडरेशन लीग का गठन के डिप्रेस्ड क्लास के न्याय की लड़ाई शुरू किए। आप शीघ्र ही विधान परिषद के सदस्य हो गये तथा कौंसिल के भीतर व बाहर दलित शोषितों के लिये लड़ते रहे। आदि हिन्दू के आप शीघ्र ही संयुक्त प्रान्त के अध्यक्ष चुन लिये गये और उसके सभापति की हैसियत से सार गर्भित भाषण दिया —

सँयुक्त प्रान्त आदि हिन्दू कान्फ्रेंस के सभापति बाबू राम चरण बी ए, एलएलबी, वकील हाई कोर्ट, मेम्बर लेजिसलेटिव कौंसिल का भाषण तारीख 2 फरवरी,1927।

प्यारे दलित तथा अछूत भाई व बहिनों,एक ऋण जो आप लोगों ने मुझे हाल में ही छोटे लाट की कौंसिल में मेम्बर बनाकर दिया था वह अदा होना शुरू भी नहीं हुआ था कि दूसरा ऋण बिन मांगे आप लोगों ने मुझे अपना सभापति बनाकर दे दिया। यह भी न देखा कि मैं कहीं दिवाला न निकाल दूँ। मैं आपको इस विश्वासशीलता का धन्यवाद देता हूँ। यद्यपि मैं अपने को इन पदों के योग्य नहीं समझता हूँ तथापि जो कुछ सेवा मुझसे हो सकेगी बहैसियत कौंसिलर और इस कान्फ्रेन्स के सभापति के रूप में करूंगा ।

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