श्री एकरसानंद आश्रम में श्रीमद् भागवत कथा का तृतीय दिवस

मृदुल कुमार कुलश्रेष्ठ सिटी रिपोर्टर मैनपुरी

कभी भी अपने से बड़ों की बात की अवेहलना नहीं करनी चाहिए- आचार्य गोविन्द महाराज

मैनपुरी। शहर के पंजाबी कॉलोनी स्थित श्री एकरसानंद आश्रम के सत्संग भवन में परम पूज्य परमहंस श्री स्वामी शारदानंद सरस्वती जी महाराज की कृपा छाया एवं दैवी संपद मंडल के परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी श्री हरिहरानंद जी महाराज के शुभ संकल्पानुसार श्रावण मास में शनिवार को सरस कथा वाचक आचार्य गोविन्द दीक्षित जी महाराज द्वारा गुरुदेव भगवान के चित्र पर माल्यार्पण कर एवं पूजन कर तथा श्रीमद भागवत कथा का शुभारंभ हुआ।

कथा के तृतीय दिवस पोथी पूजन एवं व्यास पूजन कथा के यजमान अवधेश सिंह चौहान व उनकी पत्नी अंजू चौहान द्वारा किया गया।

सरस कथा वाचक आचार्य गोविन्द देव जी ने कथा का रसपान कराते हुए कहा कि भगवान ने सृष्टि की सुंदर रचना की है।

आचार्य जी ने प्रसंग सुनाते हुए कहा कि भगवान के मन में विचार आया कि मैं एक हूं अनेक हो जाऊं तो भगवान नारायण ने अपनी नाभि से कमल पर ब्रह्मा जी को प्रकट किया उसके बाद ब्रह्मा जी को सृष्टि रचना का आदेश दिया तो ब्रह्मा जी ने संसार की रचना की।

ब्रह्मा जी ने शरीर से मनु और शतरूपा को प्रकट कर मनु और शतरूपा को सृष्टि की रचना का आदेश दिया।

तो मनु और शतरूपा ने भगवान से प्रश्न किया कि महाराज सृष्टि की रचना कैसे हो चारों तरफ जल ही जल है तो भगवान ने वाराह रूप में अवतार लेकर पृथ्वी को जल से बाहर निकाल कर स्थापित किया।

उसके उपरांत आचार्य गोविन्द देव ने मनु और शतरूपा की तीन कन्याओं के वंश की कथा को सुनाया प्रथम पुत्री के यहां भगवान स्वयं अवतार लेकर आए यहां भगवान का नाम यज्ञभगवान पड़ा माता लक्ष्मी ने दक्षिणा महारानी के रूप में अवतार लिया, मनु शतरूपा की दूसरी पुत्री के यहां भगवान कपिल रूप में अवतार लेकर आए और अपनी माता देवहूती को सांख्य शास्त्र का उपदेश दिया मनु शतरूपा की तीसरी पुत्री प्रसूती जी के यहां जगत जननी स्वयं अवतार लेकर आईं और माता का नाम सती पड़ा।

माता सती का विवाह भोले नाथ जी से हुआ पर माता सती ने भोलेनाथ की बात को कभी नहीं माना भोलेनाथ जी भगवान की कथा को सुनने के लिए कुम्भज जी के आश्रम आए तो माता सती ने कुम्भज जी पर संदेह किया।

अंत में भोले नाथ की बात न मान ने के कारण माता सती को जलना पड़ा।

आचार्य गोविन्द देव ने कहा कि कथा का सार ये कहता है कि निमंत्रण में बिना बुलाए कभी कही नहीं जाना चाहिए और हमको कभी भी अपने से बड़े की बात की अवेहलना नहीं करनी चाहिए और जो ऐसा करते हैं उनकी गति माता सती की तरह होती है।

इस मौके पर स्वामी रामेश्वरानन्द, डॉ गया प्रसाद दुबे, डॉक्टर संजीव मिश्रा, श्रीमती राधा रानी दुबे, प्राचार्य डॉ राम बदन पांडेय, राम खिलाडी यादव्, श्याम जी दीक्षित, सुभाष मिश्रा, मीडिया प्रभारी आकाश तिवारी, कृष्ण दत्त मिश्रा, बृजेश शर्मा, सत्यदेव मिश्रा, अनुज, दिनेश पाठक, अंशु पाठक, पुष्पराज तिवारी, अनिरुद्ध पांडे आदि प्रमुख रूप से शामिल रहे।

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