जवाहर बाग की बदली सूरत, पर सरकारी वादे को आज भी इंतजार, शहीद स्मारक की घोषणा सिर्फ चुनावी जुमला हुआ साबित

गोपाल चतुर्वेदी ब्यूरो चीफ मथुरा

 

अखिलेश सरकार की मथुरा की उपलब्धि के तौर पर विख्यात जवाहर बाग कांड धार्मिक नगरी के सीने मै घोंपे गए खंजर के घाव आज भी गहरे है अखिलेश सरकार के कार्यकाल मैं मथुरा के जवाहर बाग कांड को लोग आज भी भूल नहीं पा रहे है किस तरह पुलिस विभाग के मुकुल द्विवेदी, और संतोष यादव को अखिलेश सरकार के चहेते रामवृक्ष यादव के लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी।

इस प्रकरण से अखिलेश सरकार की काफी किरकिरी हुई जिसका 2017 के विधान सभा चुनाव में परिणाम देखने को भी मिला।

मथुरा के सिविल लाइंस इलाके में 270 एकड़ मै फैले जवाहर बाग को कब्जाने की नीयत से 15 मार्च 2014 मैं स्वाधीन भारत विधिक सत्याग्रह नामक संगठन के लोग दो दिन सत्याग्रह करने के नाम से बैठ गए और अपने नेता रामवृक्ष यादव के इशारे पर अपना धीरे धीरे साम्राज्य स्थापित करने लगे और धीरे धीरे जवाहर बाग पर कब्जा जमा लिया। दो दिन का सत्या ग्रह की बोल अंदर डेरा जमाने वाले संगठन को पूरे दो साल तीन महीने बीत गए । वेश कीमती जमीन को खाली कराने की कई बार कोशिश की गई पर सफलता हाथ नहीं लगी मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट तक पहुंच गया कोर्ट ने तत्काल जवाहर बाग को खाली कराने का आदेश पारित कर दिया। पुलिस के आला अधिकारियों ने फिर से जवाहर बाग को खाली कराने की रणनीति बनाई। सत्याग्रहीयो की स्थिति जानने के लिए तत्कालीन एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी, साथ में फरह थाना एस ओ संतोष यादव सहित पुलिस फोर्स के जिला कारागार की तरफ से जवाहर बाग की तरफ से गए।

जैसे ही एस पी सिटी मुकुल द्विवेदी जवाहर बाग की वाउंडी की तरफ बढ़े तव ही सत्याग्रही के रूप मै कब्जाधारियों ने पुलिस फोर्स पर फायरिंग शुरू कर दी। अचानक हुए हमले से एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और फरह एस ओ संतोष यादव को गोली लग गई। जिससे दोनों पुलिस अधिकारियों की मौत हो गई। जवाबी फायरिंग होते देख सत्याग्रहियो ने जवाहर बाग मै आग लगा दी जिसके कारण कई सत्याग्रही के भी घायल हो गए तीन घंटे तक लगातार फायरिग और आगजनि चलती रही जिसमें दो पुलिस अधिकारियों की मौत के साथ 40 पुलिस कर्मी घायल हुए और 27 सत्याग्रही भी मारे गए । तत्कालीन सरकार द्वारा जवाहर बाग मै शहीद स्मारक बनाने की घोषणा की गई थी जो आज तक लंबित पढ़ी हुई है जिसका शहीदों के परिवार को आज भी मलाल है जवाहर बाग की सूरत बदलने की सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करती हैं ।

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