विद्यार्थियों ने निहारे चंद्रमा, सूर्य, बृहस्पति एवं ओरियन नेबुला

अभिषेक चौहान सब ब्यूरो शाहजहांपुर 

शाहजहांपुर। स्वामी शुकदेवानंद महाविद्यालय के भौतिक विज्ञान विभाग के द्वारा “ब्रह्मांड दर्शन” पर दो दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में विद्यार्थियों को उद्बोधन देते हुए आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान, नैनीताल से पधारे मुख्य अतिथि डॉ वीरेंद्र यादव ने कहा कि आज प्रकाश प्रदूषण की वजह से आकाश को स्पष्टता के साथ निहार पाना बहुत मुश्किल हो गया है। उन्होंने बताया कि प्रकाश प्रदूषण की वजह से धुंधले आकाशीय पिंड एकदम नजर नहीं आते हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को भारत के सबसे बड़े दूरदर्शी “3.6 मीटर टेलिस्कोप” के विषय में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि भारत, बेल्जियम एवं कनाडा के सम्मिलित प्रयास से 4 मीटर अंतरराष्ट्रीय द्रव दर्पण दूरदर्शी तैयार किया जा रहा है। कार्यक्रम के सैद्धांतिक सेशन में डॉ वीरेंद्र यादव ने विद्यार्थियों को सूर्य के बारे में पूरी जानकारी देते हुए बताया कि सूर्य की सफेद सतह का तापमान 5500 डिग्री सेल्सियस एवं सूर्य की सतह पर मौजूद काले धब्बों का तापमान 3000 से 4000 डिग्री सेल्सियस होता है। उन्होंने बताया कि सूर्य में 76 प्रतिशत हाइड्रोजन होती है। सूर्य की सतह से आवेशित कणों के रूप में लगातार प्लाज्मा निकलता रहता है। उन्होंने बताया कि सूर्य की सतह पर मौजूद धब्बों का कारण चुंबकीय क्षेत्र होता है एवं सारी ऊर्जा सूर्य के केंद्र अथवा कोर में बनती है। उन्होंने बताया कि प्रति सेकंड नाभिकीय संलयन से 60 करोड़ टन हाइड्रोजन 59.5 करोड़ हीलियम में बदलता है और आधा करोड़ टन हाइड्रोजन ऊर्जा में बदल जाती है। इसके अतिरिक्त उन्होंने कोरोनल मास इंजेक्शन एवं सौर ज्वाला अरोरा के विषय में बताते हुए कहा कि उच्च अक्षांशों पर अरोरा का प्रभाव बहुत ज्यादा होता है। चंद्रमा की चर्चा करते हुए डॉ वीरेंद्र यादव ने चंद्रकलाओं एवं चंद्र ग्रहण के विषय में बताते हुए कहा कि चंद्रमा व पृथ्वी की कक्षाओं का प्रतल जहां पर मिलता है वह बिंदु राहु एवं केतु कहलाते हैं। इसके अलावा उन्होंने तारे, ग्रह, नक्षत्र, उल्का, नेबुला, क्षुद्र ग्रह, गैलेक्सी एवं धूमकेतु आदि के विषय में भी विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि तारों की गति के कारण नक्षत्रों के पैटर्न बदलते रहते हैं। ओरियन नेबुला के विषय में बताते हुए उन्होंने कहा कि यहां पर हाइड्रोजन का बादल विद्यमान हैं जहां तारों का निर्माण होता है, जिस कारण इसे स्काई फार्मिंग रीजन कहा जाता है। इसके अतिरिक्त उन्होंने एस्टेरॉइड बेल्ट व कूपर बेल्ट एवं उल्काओं के कारण पृथ्वी पर बनने वाले क्रेटरों को भी समझाया। उन्होंने बताया कि पृथ्वी की सबसे नजदीक स्वतंत्र गैलेक्सी एंड्रोमेडा पांच अरब साल बाद हमारी गैलेक्सी मिल्की वे आपस में मिल जाएंगी और दोनों मिलकर एक गैलेक्सी बन जाएगी जिसको कि ‘मिल्कोमेडा’ नाम दिया गया है। खगोलिकी के आधुनिक जीवन में उपयोग को विस्तार से समझाते हुए उन्होंने कहा कि जीपीएस, जीएनएसएस, आईआरएनएसएस, सीडीडी एवं अन्य बहुत से क्षेत्रों में खगोलिकी का योगदान है।

*प्रायोगिक सत्र*

प्रायोगिक सेशन में विद्यार्थियों ने रात्रि में बृहस्पति एवं इसके उपग्रहों, चंद्रमा, मृग नक्षत्र तथा ओरियन नेबुला का प्रेक्षण किया। दिन के समय सौर धब्बों को विद्यार्थियों ने भली भांति देखते हुए उनके विषय में जानकारी प्राप्त की। विद्यार्थियों को बताया गया कि सूर्य की सतह पर बनने वाले धब्बे समय के साथ आकार भी बदलते रहते हैं एवं गायब भी होते जाते हैं। उन्हें बताया गया कि सौर धब्बों का आकार भी पृथ्वी से कई गुना बड़ा होता है। कार्यक्रम का संचालन डॉ राजनंदन सिंह राजपूत ने एवं धन्यवाद ज्ञापन विभागाध्यक्ष डॉ शिशिर शुक्ला ने किया। कार्यक्रम में महाविद्यालय के सचिव डॉ अवनीश मिश्रा, उपप्राचार्य डॉ अनुराग अग्रवाल, विज्ञान संकाय के सहसंकायाध्यक्ष डॉ आलोक सिंह, डॉ अजीत सिंह चारग, डॉ प्रांजल शाही, डॉ अमित गंगवार, डॉ मृदुल पटेल, डॉ दुर्गविजय, डॉ सुजीत वर्मा, डॉ संदीप कुमार सिंह, सत्येंद्र कुमार सिंह, नितिन शुक्ला, प्रशांत शर्मा, चंदन गिरी गोस्वामी, सुधाकर गुप्ता, देवेंद्र कुमार आदि उपस्थित रहे।

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