रामगढ़ भगवानपुर में 200 बेड का अस्पताल बनाने का मामला

राजेश भारद्वाज, स्टेट हेड हरियाणा

 

अस्पताल पर सियासत: राजनीति बेमिसाल!

 

*फैसला अब तक अधर में, मगर विरोधियों को मिल गया मंच – अपने भी खड़े हुए गैरों के साथ*

 

रेवाड़ी। रामगढ़ भगवानपुर में प्रस्तावित 200 बेड के सरकारी अस्पताल को लेकर बीते एक पखवाड़े से सियासी माहौल गर्माया हुआ है। इस मुद्दे पर बीते दिन “अस्पताल बनाओ संघर्ष समिति” के आह्वान पर एक महापंचायत आयोजित की गई, जिसमें केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह पर राजनीतिक विरोधियों ने वादा खिलाफी के आरोप लगाए।

 

जानकारों के अनुसार, शुरुआत में यह एक सामाजिक और जनहित से जुड़ा मुद्दा था, लेकिन समय के साथ यह राजनीति का रंग ले चुका है। अब यह मुद्दा केवल विकास की आवश्यकता नहीं, बल्कि एक राजनीतिक मंच बन चुका है जहां विरोधी खुलकर अपना पक्ष रख रहे हैं।

 

महापंचायत में विपक्षी नेताओं ने राव इंद्रजीत सिंह पर जमकर निशाना साधा। वहीं सत्ताधारी दल के कुछ नेता भी इस विरोध की आंच को और तेज करने में पीछे नहीं रहे।

 

*?स्वास्थ्य मंत्री की सफाई – “अभी कोई जमीन फाइनल नहीं”*

 

धरने से पूर्व रामपुरा हाउस में आयोजित प्रेस वार्ता में प्रदेश की स्वास्थ्य मंत्री आरती सिंह राव ने स्पष्ट किया कि अस्पताल के लिए अभी तक किसी गांव की जमीन को अंतिम रूप नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा कि “जगह तय करने की प्रक्रिया जारी है और सभी मापदंडों का पालन किया जाएगा। अस्पताल केवल उपयुक्त स्थान पर ही बनाया जाएगा।”

 

 

 

स्वास्थ्य मंत्री की इस स्थिति स्पष्टता के बावजूद राजनीतिक बयानबाजी का दौर जारी है।

 

*कौन-कौन कर रहा दावा?*

 

सबसे पहले रामगढ़ भगवानपुर पंचायत ने 10 एकड़ जमीन देने की पेशकश की थी, लेकिन यह भूमि वॉटर टैंक के लिए रजिस्टर्ड थी, न कि अस्पताल के लिए। बाद में शहबाजपुर, फिदेड़ी, माजरा शयोंराज और गोकलगढ़ की पंचायतों ने भी अपनी-अपनी भूमि देने का प्रस्ताव रख दिया।

 

सरकार का मानना है कि यह एक बड़ा प्रोजेक्ट है, इसलिए स्थल चयन में तकनीकी और जनहित के सभी मापदंड देखे जा रहे हैं।

 

*जनता की राय – सुविधा प्राथमिकता हो*

 

स्थानीय नागरिकों की आम राय है कि अस्पताल वहीं बने जहां से अधिक से अधिक जनसंख्या को स्वास्थ्य सुविधा मिल सके।

 

“रामगढ़ भगवानपुर की पहल सराहनीय है, लेकिन अस्पताल का निर्माण उस स्थान पर होना चाहिए जो क्षेत्रीय आवश्यकताओं और सुलभता की कसौटी पर खरा उतरता हो,” – एक स्थानीय बुजुर्ग की राय।

 

राजनीति या जनहित?

 

यह मुद्दा अब केवल जनसेवा का नहीं रहा। विरोधी दल और सत्ता पक्ष के असंतुष्ट गुट इस मामले को लेकर राजनीतिक रोटियां सेकने में जुटे हैं। क्षेत्रीय जनता इस खींचतान से असमंजस में है कि क्या उन्हें जल्द अस्पताल मिलेगा, या यह परियोजना भी राजनीति की भेंट चढ़ जाएगी।

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