हम जो खा रहे हैं, वही हमें खा रहा है जाने कैसे शरद दीक्षित के साथ

विशाल गुप्ता प्रधान संपादक -9026309999

हम जो खा रहे हैं, वही हमें खा रहा है

 

🧠 आयुर्वेद और विज्ञान दोनों कहते हैं:

“जो उपज आपके आसपास हो रहा है, वही आपके शरीर के लिए सर्वोत्तम है।”

लेकिन हमने बाज़ार के कहे पर चलना सीख लिया…

 

 

🚛 फर्टिलाइज़र, पैकेजिंग और लंबी ढुलाई ने

हर चीज़ को हर जगह पहुँचाना शुरू कर दिया।

अब खाने की गुणवत्ता नहीं, टिकाऊपन और मुनाफा ज़रूरी हो गया।

 

📦 जो चीज़ जल्दी नहीं सड़ती — वही हर जगह बिक रही है।

और सबसे ज़्यादा खाई जा रही है: गेहूं और चाय।

 

 

🥖 गेहूं – हरित क्रांति का मुखौटा

 

हर कोने में गेहूं परोसा जाने लगा।

🌱 जहां कभी बाजरा, मक्का, जौ शरीर को ताकत देते थे,

वहाँ गेहूं के नाम पर बाजार ने हमें बीमार कर दिया।

 

👶 सोमालिया की भूख मिटाने वाला आलू, भारत में भूख बढ़ाने लगा गेहूं!

 

🍵 चाय – स्वाद नहीं, धीमा जहर

 

कभी जीवन का हिस्सा नहीं थी — अब हर मीटिंग की शुरुआत है।

फीकी हो या मीठी — हर चाय शरीर को भीतर से खोखला कर रही है।

 

☠️ दार्जिलिंग के बागानों में चाय की सच्चाई यह है:

नए पौधे ज़िंदा नहीं बचते, क्योंकि

5000ml पेस्टीसाइड की डोज़ से झुलस जाते हैं!

 

⚠️ अब लोग बीमार नहीं होते, बीमारियों से जीते हैं

 

😟 गैस – आम बात

😣 एसिडिटी – आदत

🧁 मोटापा – ट्रेंड

🩺 मधुमेह – जीवन का हिस्सा

☢️ कैंसर – नियति मान ली गई है…

 

 

🌾 स्थानीय अनाज – अब सिर्फ त्योहारों की शोभा

 

बाजरा, मक्का, जौ – जो कभी शरीर को ताकत देते थे,

आज केवल “थाली की शोभा” बनकर रह गए हैं।

 

🛒 बाजार बेरहमी से खेल रहा है,

और आम आदमी अपनी आदतों में सोया हुआ है…

 

 

🏛️ कोई निगरानी नहीं, सिर्फ सरकार की तरफ टकटकी…

 

👉 बाज़ार मनमानी कर रहा है

👉 स्वास्थ्य बिगड़ रहा है

👉 और हम… बस “ऐसा ही चलता है” मान बैठे हैं!

 

🎯 अब भी समय है – लौट आइए अपनी मिट्टी की ओर,

अपने खेत की उपज की ओर,

अपने स्वास्थ्‍य की जड़ की ओर। 🌿

 

🌱 “विकास वो नहीं जो पेट भर दे,

विकास वो है जो ज़िंदगी में ज़हर ना घोले…”

 

 

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