वक्फ संशोधन कानून: क्या संपत्ति और इबादत की सुरक्षा सिर्फ एक बहाना है?

बनवारी लाल प्रभारी उत्तर प्रदेश

 

आगरा: वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ देशभर में अदालतों में याचिकाएं दायर की जा रही हैं, जिसमें यह दावा किया गया है कि मुसलमानों से उनकी जमीनें और अधिकार छीन लिए जाएंगे और उन्हें इबादत करने से भी रोका जाएगा। हालांकि, इन दावों के बीच एक कड़वी सच्चाई भी सामने आती है: देशभर में कब्रिस्तानों और वक्फ की जमीनों पर अवैध कब्जे की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। सवाल यह उठता है कि इन कब्जों के पीछे कौन है और कौन इन्हें संरक्षण दे रहा है? इस विषय पर कोई भी मुंह खोलने को तैयार नहीं है।

 

यह विडंबना ही है कि “चोर को ही चौकीदारी देने” वाली कहावत यहां सच साबित होती दिख रही है। जिन लोगों को वक्फ संपत्तियों की देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी जाती है, वे अक्सर अपनी जिम्मेदारी निभाने के बजाय अपने परिवार को धनवान और शक्तिशाली बनाने में लगे रहते हैं। इसी कड़ी में कब्रिस्तानों पर अवैध कब्जे करवाए जाते हैं और सालों पुरानी वक्फ संपत्तियों को बेचने और खरीदने की साजिशें भी आम हो गई हैं।

 

आगरा में भी ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं। ईदगाह जामा मस्जिद के आसपास फैली गंदगी ईदगाह की बदहाली का प्रमाण है। पचकाईयो कब्रिस्तान के अंदर ही ढोलक वालों ने पूरी बस्ती बना ली है, स्ट्रीट लाइटों की बिजली चोरी कर अपने घरों को रोशन किया जा रहा है, और कब्रिस्तान के अंदर ही सामान लगाकर पूरी बस्ती बसा दी गई है, जहां बच्चे भी पैदा हो रहे हैं। यह सब खुलेआम चल रहा भ्रष्टाचार का एक ज्वलंत उदाहरण है।

 

वक्फ संपत्तियों की देखभाल के नाम पर गठित विभिन्न समूह अक्सर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलते नजर आते हैं। आगरा के व्हाट्सएप ग्रुपों में ऐसी ऑडियो अक्सर सुनने को मिल जाती हैं, जब एक पक्ष दूसरे पक्ष को गालियां देता है और अनाप-शनाप आरोप लगाता है। लेकिन अगर केयरटेकिंग की बात की जाए, तो वहां पूरी तरह सन्नाटा पसरा रहता है।

 

मस्जिदों में नमाज पढ़ने वाले लोग यह उम्मीद करते हैं कि कमेटी सभी आवश्यक इंतजाम समय पर और सही तरीके से करेगी। लेकिन हाल ही में शाही जामा मस्जिद पर ईद-उल-अजहा के मौके पर सुबह 7 बजे का एक वाकया सामने आया, जब नौतपा के भीषण गर्मी में, सूरज पृथ्वी के सबसे करीब होने के बावजूद, हजारों लोगों को बिना किसी छाया के नमाज पढ़ने पर मजबूर किया गया। हजारों लोग नमाज पढ़ने के लिए इकट्ठा हुए थे, लेकिन उनके लिए कोई इंतजाम नहीं था। लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया था, लोगो का कहना है कि इंतजाम करने में पैसा खर्च होता है, और पैसा खर्च होता है तो कमेटी के सदस्यों के पास “बचत” कम बचती है।

 

यह सब वक्फ केयरटेकर कमेटी की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है। जब अपनी ही संपत्तियों की सुरक्षा और इबादतगाहों की व्यवस्था नहीं संभाली जा रही है, तो वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ मुसलमानों के हक और इबादत की सुरक्षा का दावा कितना सच्चा है, यह एक विचारणीय प्रश्न है। क्या यह सब सिर्फ अपनी नाकामियों और भ्रष्टाचार को छिपाने का एक बहाना है? यह समय है जब वक्फ संपत्तियों की वास्तविक स्थिति और उनके रख-रखाव की जिम्मेदारी लेने वालों की जवाबदेही पर गंभीरता से विचार किया जाए।

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