कांग्रेस से खफा कैप्टन अजय सिंह यादव

‘टांय टांय फिस्स’ पार्टी को कह सकते हैं ‘बाय-बाय’

 

सोलापुर से लौटे, मन से भी लौटेंगे?

 

 

 

रेवाड़ी। हरियाणा कांग्रेस की सियासत में एक बार फिर भूचाल आने के आसार हैं।

छह बार के विधायक और अनुभवी नेता कैप्टन अजय सिंह यादव को कांग्रेस ने एक झटके में ओबीसी विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया। लेकिन जिस अंदाज़ में हटाया गया, वह न सिर्फ असहज करने वाला था, बल्कि एक वरिष्ठ नेता के मान-सम्मान पर भी सवालिया निशान लगा गया।

 

कैप्टन अजय यादव उस वक्त महाराष्ट्र के सोलापुर में एक ओबीसी सम्मेलन में मुख्य अतिथि बनने जा रहे थे, लेकिन रास्ते में ही उन्हें सूचना मिली कि अब वे पद पर नहीं हैं। कैप्टन ने कार्यक्रम छोड़ वापसी की राह पकड़ी।

यह केवल गाड़ी की वापसी नहीं थी, शायद पार्टी से मन की दूरी की शुरुआत भी थी।

 

“मुझे इस पद से हटाए जाने की कोई शिकायत नहीं,पर तरीका गलत था”

कैप्टन ने सफाई दी –मैंने छह महीने पहले ही इस्तीफा दे दिया था, लेकिन अच्छा होता अगर मुझसे कहकर इस्तीफा लिया जाता।”

 

हालांकि कैप्टन ने पार्टी छोड़ने की बात को नकारा है और कहा है कि

“मेरी नेता आज भी सोनिया गांधी हैं।”

पर उनके सुरों में जो कसक है, वह साफ जाहिर करती है कि कांग्रेस अब उनके लिए ‘पहला घर’ नहीं रही।

 

हुड्डा और हाईकमान से नाराजगी पुरानी कैप्टन की भूपेंद्र सिंह हुड्डा से तनातनी नई नहीं है।

सत्ता में रहते हुए उन्होंने हुड्डा के खिलाफ कई बार मोर्चा खोला और विपक्ष में आने के बाद भी उनके तेवर कम नहीं हुए।

गुरुग्राम से लोकसभा टिकट कटना और बेटे चिरंजीव राव की रेवाड़ी से हार – ये दोनों घटनाएं उनके लिए निजी झटके भी साबित हुईं।

 

पार्टी को ‘ऑक्सीजन’ की ज़रूरत, कैप्टन का ‘वेंटिलेटर’ बंद हो गया है, हरियाणा में कांग्रेस वैसे ही हाशिए पर खड़ी है। ऐसे में अगर कैप्टन जैसे नेता भी पार्टी से किनारा करते हैं, तो कांग्रेस की हालत और बिगड़ सकती है।

कई कार्यकर्ता पहले ही असमंजस में हैं, और अब कैप्टन की स्थिति ने एक बार फिर पार्टी की अंदरूनी हालात उजागर कर दिए हैं।

 

क्या राव इंद्रजीत की राह पकड़ेंगे कैप्टन?

 

अब सवाल ये है कि क्या कैप्टन भी राव इंद्रजीत सिंह, अशोक तंवर, और किरण चौधरी जैसे नेताओं की तरह कांग्रेस को ‘बाय-बाय’ कहेंगे, या भीतर ही भीतर पार्टी को चुनौती देते रहेंगे?

 

फिलहाल सबकी निगाहें कैप्टन पर हैं लेकिन वह चुप हैं, लेकिन हरियाणा की राजनीति उनके अगले कदम की आहट सुनने को बेताब है।

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