कोर्ट रूम में तंबाकू और गुटखा खाने पर बर्खास्त हो गए थे जज, अब हाई कोर्ट ने दी बड़ी राहत

सौरभ चतुर्वेदी ब्यूरो अहमदाबाद

 

गुजरात हाईकोर्ट ने कोर्ट रूम में तंबाकू और पान मसाला खाने के आरोपी जज की बर्खास्तगी को रद्द करते हुए कहा है कि यह गंभीर है लेकिन उन्हें कोई और सजा दी जानी चाहिए। सालों पुराने इस मामले में ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट बने न्यायिक अधिकारी को बड़ी राहत मिली है। अब हाईकोर्ट का प्रशासन नई सजा तय करेगा।

 

कोर्टरूम में जज के तंबाकू-पान मसाला खाने का मामला

गुजरात हाईकोर्ट ने जज की बर्खास्तगी को किया रद्द

 

हाईकोर्ट ने कहा यह सही नहीं है, कोई दूसरी सजा दे

हाइलाइट्स पढ़ने के लि

गुजरात हाईकोर्ट ने रद्द की जज की बर्खास्तगी।

 

अहमदाबाद: कोर्ट रूम में तंबाकू और पान मसाला खाने के आरोपों में बर्खास्त हुए एक जज को हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है। हाईकोर्ट ने जज की बर्खास्तगी को रद्द करते हुए कहा है उन्हें कोई और सजा दी जा सकती है। वडोदरा में तैनाती के दौरान एक जज काफी विवादों में आए थे, हालांकि उनके ऊपर तमाम आरोप साबित नहीं हुए थे लेकिन कोर्ट रूम में तंबाकू और पान मसाला के सेवन और वकील की तरफदारी करने पर उन्हें बर्खास्त किया गया था। अब काफी समय बाद हाईकोर्ट ने जज की नौकरी बचाई है। हाईकोर्ट ने जज को पुन: बहाल करने का आदेश पारित करते हुए बर्खास्तगी के अलावा दूसरी सजा देने को कहा है।

 

 

यह मामला 2007 से 2009 के बीच वडोदरा में जज की पोस्टिंग के दौरान के उनके आचरण से जुड़ा है। जज पर कर्मचारियों के उत्पीड़न समेत 23 तरह के कदाचार के आरोप लगाए गए थे। यह न्यायिक अधिकारी 2005 में सिविल जज और न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी बने थे। अप्रैल 2007 से जनवरी 2009 के बीच वडोदरा में उनकी पोस्टिंग के दौरान उनके आचरण की जांच के आदेश दिए गए थे। जांच में 14 आरोप पूरी तरह या आंशिक रूप से साबित हुए थे। उन्हें अप्रैल 2012 में निलंबित कर दिया गया था। इसके बाद हाईकोर्ट के अनुशासनात्मक प्राधिकरण ने निष्कर्ष निकाला कि उनका कृत्य एक न्यायिक अधिकारी के लिए अनुचित था। इसके चलते अगस्त 2016 में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। फिर जज ने HC का दरवाजा खटखटाया। मार्च 2024 में बेंच ने सबूतों के अभाव में सभी बड़े आरोपों को रद्द कर दिया। सिर्फ़ तंबाकू चबाने और वकील की तरफदारी करने के आरोप बरकरार रहे।

 

हाईकोर्ट ने कहा कि ये आरोप बर्खास्तगी की सजा के लिए पर्याप्त नहीं हैं। हाई कोर्ट ने मार्च 2024 में अपना फैसला सुनाया और जनवरी 2025 में इस पर स्पष्टीकरण दिया। जस्टिस बीरेन वैष्णव और निशा ठाकोर की बेंच ने मार्च 2024 में कहा कि कोर्ट रूम में तंबाकू, पान मसाला और गुटखा खाना कोर्ट की गरिमा के खिलाफ है। यह बिल्कुल भी माफ़ करने लायक नहीं है। न्यायिक अधिकारी एक बहुत ही संवेदनशील और महत्वपूर्ण संवैधानिक भूमिका निभाते हैं। कोर्ट के सामने यह मामला 31 जनवरी, 2025 को फिर से लाया गया था। हाईकोर्ट के प्रशासनिक विभाग ने आदेश में बर्खास्तगी के बजाय समाप्ति शब्द के इस्तेमाल पर स्पष्टीकरण मांगा था। बेंच ने 31 जनवरी को कहा कि हमने अधिकारियों पर छोड़ दिया है कि वे नियमों के अनुसार बर्खास्तगी के अलावा कोई उचित सजा तय करें।

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