जैसा दर्शक का जनमानस होता है और वह समाज में परिलक्षित होता है, वैसा ही उस क्षेत्र का रंगमंच विकसित होता है।”प्रोफेसर रामवीर सिंह

मनोज कुमार शर्मा ब्यूरो चीफ मैनपुरी

आगरा। “जैसा दर्शक का जनमानस होता है और वह समाज में परिलक्षित होता है, वैसा ही उस क्षेत्र का रंगमंच विकसित होता है।” यह कहना है हिंदी के वरिष्ठ समीक्षक और केंद्रीय हिंदी संस्थान के पूर्व निदेशक प्रोफेसर रामवीर सिंह का । श्री सिंह आज यहां सांस्कृतिक संस्था ‘रंगलीला’,एसिड हमलों की शिकार महिलाओं का आंदोलन ‘शीरोज हैंगआउट’और ‘ब्रज की पहली महिला पत्रकार प्रेमकुमारी शर्मा स्मृति संगठन’ द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित हिंदी रंगमंच दिवस 25 के विषय ‘जनमानस का दर्पण है हिंदी रंगमंच’ में बोल रहे थे।

 

प्रोफेसर सिंह ने आजादी के आंदोलन का उदाहरण देते हुए और उसके बाद आजादी प्राप्ति के भारतीय समाज के उद्देश्यों की आपूर्ति की मांग करने वाले भारतीय समाज का उदाहरण देते हुए कहा कि उस समय जैसा जनता का मानस था वैसा ही वह नाटकों में परिदर्शित हो रहा था। ” जैसा भारत वह चाहते थे वैसा ही सपना उन्होंने अपने नाटकों में देखा। हिंदी भाषी पट्टी चूंकि सबसे बड़ी भौगोलिक पट्टी थी इसलिए उसका नाटक भी उतने ही विहंगम रूप में दिखाई देता रहा।” प्रोफेसर सिंह ने कहा।

 

इसी विषय पर बोलते हुए हिंदी के वरिष्ठ लेखक व कथाकार अरुण डंग ने आजादी पूर्व के आगरा के दो बड़े नाटककारों का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने जो नाटक रचे वे आजादी की लड़ाई के साथ गुत्थमगुत्था जुड़े हुए थे। उन्होंने पृथ्वीराज कपूर और उनके पृथ्वी थियेटर के कुछ नाटकों का उल्लेख करते हुए कहा कि वे सब आजादी के बाद के भारत के जनमानस की आकांक्षाओं से जुड़े हुए थे।अतः उनकी ध्वनियां वैसे ही सुनाई पड़ी।

 

वरिष्ठ रंगकर्मी प्रोफेसर ज्योत्स्ना रघुवंशी और डॉक्टर विजय शर्मा ने इक्कीसवीं सदी में वंचितों के लिए विकसित हुए रंगमंच की मांग के नाटक पर जोर देते हुए कहा कि बड़े दुख का विषय है कि पिछले दो दशकों में जो रंगमंच विकसित हुआ है वह पौराणिक और मिथकीय नाटकों से ऊपर नहीं उठ पाया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय की मास कम्युनिकेशन और दूरसंचार विभाग की रिटायर्ड अध्यक्ष प्रोफेसर विनीता गुप्ता ने आज के मिथकीय नाटकों में वर्तमान जनमानस के स्वर को अनुपस्थिति पाने की घटना पर अफसोस जताया । कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर नसरीन बेगम ने किया जबकि आयोजन आशीष शुक्ल व रामभरत उपाध्याय ने किया। अंत में धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ रंगकर्मी मनोज सिंह ने किया।सभी आगुन्तकों का स्वागत युवा रंगकर्मी हिमानी चतुर्वेदी ने किया।

 

इस अवसर पर आयोजन समिति की ओर से ‘खलीफा फूलसिंह यादव सम्मान’ से मथुरा की वरिष्ठ नौटंकी कलाकार कमलेश लता आर्य को सम्मानित किया गया। स्वास्थ्य कारणों से अनुपस्थित होने के कारण उनके स्थान पर उनके पुत्र विजय कुमार विद्यार्थी ने उक्त सम्मान ग्रहण किया।

 

इस अवसर पर रंगलीला ने कथावाचन की अपनी विशिष्ट प्रस्तुति में प्रेमचंद की मशहूर कहानी ‘पूस की रात’ का रंगपाठ किया। अभिनय प्रथम यादव व निर्देशन वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल शुक्ल ने किया।

इस अवसर पर बड़ी संख्या में शहर के प्रबुद्ध कलाप्रेमी मौजूद थे।

प्रमुखजनों में ज्योति खंडेलवाल, शलभ भारती,मनीषा शुक्ला, भरतदीप माथुर,आभा चतुर्वेदी, रुनु दत्त, नीरज जैन, डॉक्टर सीपी राय, अखिलेश दुबे, अनिल शर्मा, नरेश पारस,महेश धाकड़, सुनयन शर्मा, रोमी चौहान,सत्यम शुक्ला, गिरिजाशंकर शर्मा, दिलीप रघुवंशी, मन्नू शर्मा,अनिल अरोरा,आनंद राय, अभिजीत सिंह, ब्रजेन्द्र सक्सेना, टोनी फास्टर,शशांक वर्मा, कृष्ण मुरारी वशिष्ठ, रवि प्रजापति,राकेश यादव,कमलदीप,अंकित उपाध्याय, डॉक्टर राजीव शर्मा आदि उपस्थित रहे।

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