योग धारणा से योगी को भगवान के दर्शन हृदय में हो जाते हैं-ललित शास्त्री

शालिनी कुलश्रेष्ठ जिला संवाददाता मैनपुरी

 

कथा का रसपान कराते कथा व्यास श्री ललित शास्त्री जी।

 

ब्रहमनिष्ठ श्री स्वामी शारदानंद सरस्वती महाराज की द्वितीय पुण्य तिथि पर आयोजित ब्रह्म निर्वाण महोत्सव का द्वितीय दिवस

 

मैनपुरी। शहर के पंजाबी कालोनी स्थित श्री एकरसानंद आश्रम में परम पूज्य सदगुरुदेव श्री परमहंस अनन्त विभूषित श्रोतिय ब्रहमनिष्ठ श्री स्वामी शारदानंद सरस्वती महाराज की द्वितीय पुण्य तिथि ब्रह्म निर्वाण महोत्सव के रूप में महामंडेश्वर स्वामी श्री हरिहरानंद सरस्वती जी महाराज के सानिध्य में मनाई जा रही है।

ब्रह्म निर्वाण महोत्सव के द्वितीय दिवस श्रीमद्भागवत कथा का रसपान महाराज श्री के कृपापात्र कथा व्यास श्री ललित शास्त्री जी के द्वारा कराया गया।

परीक्षित बने सूर्यकांत त्रिपाठी ने श्रीमद् भागवत गीता व कथा व्यास का मंत्रोच्चारण के बीच पूजन किया।

कथा व्यास श्री ललित शास्त्री जी ने श्रीमद् भागवत कथा का श्रद्धालुओं को रसपान कराते हुए कहा कि राजा परीक्षित का विस्तार से प्रसंग सुनाया।

उन्होंने कहा कि मनुष्य जन्म लेने के पश्चात् संसार के मायाजाल में फँस जाता है और उसे मनुष्य योनि का वास्तविक लाभ प्राप्त नहीं हो पाता। उसका दिन काम धंधों में और रात नींद तथा स्त्री प्रसंग में बीत जाता है। अज्ञानी मनुष्य स्त्री, पुत्र, शरीर, धन, सम्पत्ति सम्बंधियों आदि को अपना सब कुछ समझ बैठता है। वह मूर्ख पागल की भाँति उनमें रम जाता है और उनके मोह में अपनी मृत्यु से भयभीत रहता है पर अन्त में मृत्यु का ग्रास हो कर चला जाता है।

कथा व्यास श्री ललित शास्त्री जी ने कहा कि मनुष्य को मृत्यु के आने पर भयभीत तथा व्याकुल नहीं होना चाहिये। उस समय अपने ज्ञान से वैराग्य लेकर सम्पूर्ण मोह को दूर कर लेना चाहिये। अपनी इन्द्रियों को वश में करके उन्हें सांसारिक विषय वासनाओं से हटाकर चंचल मन को दीपक की लौ के समान स्थिर कर लेना चाहिये। इस समस्त प्रक्रिया के मध्य ॐ का निरन्तर जाप करते रहना चाहिये जिससे कि मन इधर उधर न भटके। इस प्रकार ध्यान करते करते मन भगवत् प्रेम के आनन्द से भर जाता है। फिर चित्त वहाँ से हटने को नहीं करता है। यदि मूढ़ मन रजोगुण और तमोगुण के कारण स्थिर न रहे तो साधक को व्याकुल न हो कर धीरे धीरे धैर्य के साथ उसे अपने वश में करने का उपाय करना चाहिये। उसी योग धारणा से योगी को भगवान के दर्शन हृदय में हो जाते हैं और भक्ति की प्राप्ति होती है।”

इस मौके पर डा. ग्या प्रसाद दुबे, डा. संजीव मिश्रा वैद्य, प्राचार्य डॉ रामबदन पांडेय, संदीप चतुर्वेदी, सुभाष मिश्रा, श्याम दीक्षित, आचार्य कृष्ण दत्त मिश्रा, मीडिया प्रभारी आकाश तिवारी, बृजेश शर्मा, राम खिलाड़ी यादव आदि मौजूद रहे।

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