चौक रामलीला में भरत चित्रकूट गमन, सीता हरण के मार्मिक मंचन ने दर्शकों को किया भावुक

मोहित गुप्ता मंडल संवाददाता

 

श्री बाल रामलीला नाट्य कला मंदिर, चौक के तत्वावधान में सुविख्यात श्री राधारानी रामलीला व रासलीला मण्डल बृजधाम महरौली वृंदावन, मथुरा द्वारा रामलीला मंचन के अष्टम दिवस भरत चित्रकूट गमन, सीता हरण लीला का मार्मिक मंचन किया गया, मंचन देखकर दर्शक भावुक हो गये। मंचन का शुभारंभ कमेटी के संस्थापक राजेश बाबू वर्मा, संयोजक ज्ञानेन्द्र अवस्थी (धीरू), उपाध्यक्ष भोले त्रिवेदी, निरीक्षक राजीव गुप्ता, मंच व्यवस्थापक रमेश सैनी, राहुल श्रीवास्तव द्वारा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम लखन के पूजन अर्चन आरती के बाद किया गया।मंचन में कलाकारों ने दिखाया कि राम के वियोग में दशरथ के प्राण त्यागने के बाद अयोध्या पंहुचे भरत ने क्रिया कर्म के बाद राम को वन से वापस लाने के लिए नगर वासियों के साथ चल देते है। चित्रकूट पंहुच कर भरत के साथ तीनो मांताएं, गुरू वशिष्ठ, महाराज जनक के अलावा अयोध्या वासियों ने लौटने का आग्रह किया, परंतु राम ने स्वर्गवासी पिता के वचनों की रक्षा हेतु लौटने से मना कर दिया। भरत के बार बार आग्रह करने पर अपनी पादुका देकर अयोध्या वापस कर दिया। अयोध्या पंहुचे भरत राज सिंहासन पर राम की चरण पादुका रख कर स्वंय सन्यासी भेष बनाकर नंदीग्राम में कुटी बनाकर रहने लगे। अयोध्या वासियों के चित्रकूट देख लेने बाद राम वहां से पंचवटी पंहुच गये जहां सूपनखा उन पर मोहित हो गयी, जो सुंदरी का रूप बना राम के पास पंहुची तो वह उसके शादी का प्रस्ताव ठुकरा देते है, उसने सीता पर आक्रमण करना चाहा तो लक्ष्मण ने उसके नाक कान काट लिए। सूपनखा अपने कटे नाक कान लेकर खर दूषण के पास पंहुची। आक्रमण के लिए आये सभी राक्षसों का राम ने वध कर दिया। उसके बाद वह रावण के दरबार में पंहुचती है और बदला लेने के लिए उकसाती है। रावण, मारीच को सोने का मृग बनकर सीता के पास जाने को कहता है। सीता सोने का मृग देख उसे पाने की जिद करती है। प्रभु राम मृग को पकडने घने वन मे जाते और मृग बने मारीच को मार देते हैं। लेकिन खुराफाती मारीच मरते समय ऐसी आवाज निकालता है, कि जैसे राम लक्ष्मण को मदद के लिए पुकार रहे हो। आवाज को सुनकर लक्ष्मण रेखा खीच कर सीता मैया से कहते हैं, कि आप इससे बाहर कदम न रखना। इसी दरम्यान रावण साधू के वेश में आकर भिक्षा की मांग करता है। मैया सीता सोचती है कि साधू को खाली हाथ भेजना अनादर होगा, इसलिए वह जैसे ही रेखा को पार करती है, तभी‌ दुष्ट रावण सीता का हरण कर लेता है। जब रावण माता सीता का हरण कर लंका की ओर जाता है तो रास्ते में रावण का सामना जटायु से होता है। जिससे रावण को युद्ध करना पड़ता है, अखिर में रावण जटायु को लहुलुहान कर नीचे गिरा देता है और माता सीता को लंका लेकर पहुंच जाता है। जब राम और लक्ष्मण दोनो भाई वापस कुटी पहुंचते ही तो देखते ही सीता कुटी में नहीं है और राम व लक्ष्मण सीता की खोज में वन-वन भटकते व विलाप करते है। जिसे देख दर्शक भावविभोर हो जाते हैं।

 

…..मेलाध्यक्ष चौधरी उमेश गुप्ता ने कमेटी और आये सभी का आभार जताया। उन्होंने कहा कि आज की‌ दोनों लीलाओ हमे जीवन में महत्वपूर्ण मूल्यों और आदर्श की शिक्षा मिलती है। भरत का आत्म संयम और धैर्य हमें जीवन में कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है। इस अवसर पर मेला टीम के सभी पदाधिकारियों सहित सैकड़ों की संख्या में दर्शक गण उपस्थित रहे। सभी ने मंचन का आनंद लिया और भगवान राम का आशीर्वाद प्राप्त किया। मंच का संचालन मेला व्यवस्थापक अम्बरीश द्विवेदी द्वारा किया गया।

 

 

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