गाँधी जयंती पर विशेष:-गाँधी जी की विचारधारा: सत्य, अहिंसा और समाज सेवा

राजेश भारद्वाज स्टेट हेड हरियाणा 

गाँधी जी की विचारधारा: सत्य, अहिंसा और समाज सेव

 

 

गाँधी जी का सत्य से अभिप्राय उस सम्पूर्ण ज्ञान अथवा वास्तविकता से है, जो शाश्वत है, जो सदा से है, जो सदा रहेगा, जो समस्त प्राणियों की गतिविधियों का ही नहीं, बल्कि समस्त ब्रह्माण्ड का संचालन करता है तथा जिसका अनुसरण करने से सुख,सन्तोष व परम आनन्द की अनुभूति होती है। गाँधी जी कहते थे कि हर मनुष्य में स्वयं के लिए सत्य निर्धारण की एक ऐसी अद्भुत,अनुपम क्षमता है जिसका ज्ञान व अनुसरण करके आत्मसात करने पर वह अन्य प्राणियों से अलग,अद्वितीय व श्रेष्ठ बनता है। इस व्यापकता के सन्दर्भ में गाँधी जी ने सत्य को सच्चिदानन्द की संज्ञा दी है।

 

सत्य ही ईश्वर है, यह अजर, अमर, अमिट, अविनाशी है। यह समय और स्थान की सीमाओं से परे है। सत्य का सम्बन्ध सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक एवं आर्थिक जीवन के सभी क्षेत्रों से है। गाँधी जी सत्य को ही सम्पूर्ण , सर्वोच्च तथा सर्वश्रेष्ठ धर्म मानते थे। स्वयं ईश्वर को सत्य का पर्यायवाची मानते थे ।

 

‘ईश्वर ही सत्य है’ के सिद्धान्त को मानने वाले इस जगत में गाँधी जी ने ‘सत्य ही ईश्वर है’ के सिद्धान्त को मानना तथा इसका इस रूप में प्रचार करना उस समय शुरू किया जब उन्होंने यह जान लिया कि इस धरती पर ईश्वर को नकारने वाले तो अनेक हुए हैं, पर सत्य को नकारने वाला न कभी कोई हुआ है, न ही होगा , क्योंकि सत्य ही परम वास्तविकता का परिचायक है। इस प्रकार उन्होंने जीवन भर सत्य रूपी ईश्वर की ही आराधना उपासना की। उनकी मान्यता थी कि सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त एक सर्वगुणसम्पन्न जीवन शक्ति है जिसको सच्चिदानन्द, ब्रह्म, राम,प्रभु, ईश्वर अथवा केवल सत्य कहा जा सकता है।

 

गाँधी जी ने अपना सम्पूर्ण जीवन सत्य के अनेक रूपों की खोज में लगा दिया। उदाहरण के तौर पर नैतिक दृष्टि से उन्होंने सत्य को परमार्थ के रूप में देखा।सामाजिक, आर्थिक दृष्टिकोणों से सत्य से उनका अभिप्राय ऐसे पारस्परिक सम्बन्धों से था जो न्यायोचित हो, भेदभाव रहित हो तथा सद्भाव व सहिष्णुता पर आधारित हो। राजनैतिक दृष्टिकोण से, सत्य से उनका अभिप्राय न केवल भारत की स्वतन्त्रता से था, बल्कि ‘प्रत्येक राष्ट्र की प्रत्येक पराये शासन से स्वतन्त्रता’ से था।

 

शाश्वत, सम्पूर्ण अथवा परमसत्य को गाँधी जी केवल ईश्वर की ही विशिष्टता मानते थे। वे सम्पूर्ण सत्य में साध्य की प्राप्ति की दिशा में, आंशिक सत्य के अनुसरण को एक अत्यन्त कारगर साधन मानते थे। उनका दृढ़ विश्वास था कि तपस्वियों के रूप में पहाड़ों व जंगलों में भटकते मनुष्य परमसत्य को प्राप्त नहीं कर सकते। वे मानते थे कि परमसत्य की प्राप्ति एक सांसारिक आदर्श है, जिसे समाज में रहते हुए प्राणी मात्र की सेवा के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। यदि मनुष्य अपने आस पास रहने वाले लोगों के दुःखों को दूर करने के महान व पुनीत यज्ञ में लग जाये, तो उससे एक विपदा विहीन समाज की संरचना होगी, जो अपने आप में एक अपार सत्य होगा।

 

गाँधी जी के लिए यदि सत्य एक परम साध्य था तो अहिंसा उसकी प्राप्ति का एक अद्वितीय साधन। उनकी मान्यता थी कि अहिंसा के अभाव में, सत्य मात्र असत्य ही रहेगा। सत्य रूपी साध्य को अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही प्राप्त किया जा सकता है। अहिंसा से उनका अभिप्राय था- मन, वचन, कर्म से हिंसा का त्याग करना।

 

सत्य की खोज के लिए गाँधी जी नैतिक जीवन की प्रबलता को भी अनिवार्य मानते थे। जिसका आचरण अनैतिक होगा, वह सत्य की प्राप्ति कर ही नहीं सकता।

 

गाँधी जी को महात्मा गाँधी के नाम से जाना गया क्योंकि उनकी सत्य रूपी परमात्मा में पूर्ण आस्था थी। सत्य रूपी परमेश्वर की आराधना में सत्य के रास्ते पर चलना और समस्याओं का अहिंसा द्वारा निदान करना, गाँधी जी की जीवन शैली का अनूठा अभिन्न अंग था। सत्य साध्य है, अहिंसा साधन है। अहिंसा दुर्भावनाओं, दुर्वचनों तथा दुष्कर्मों के स्थान पर– अपने सकारात्मक रूप में स्नेह, विनम्रता, प्रेम, दया, करुणा,परोपकार, सहयोग,सदाचार,सदव्यवहार, न्याय तथा निर्भयता जैसे सदभावों में झलकती है। अहिंसा वह स्वाभाविक और सर्वोत्तम साधन है जिसके द्वारा साध्य अर्थात् सत्य रूपी ईश्वर को, सर्वशक्तिमान ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। व्यक्ति की ही नहीं अपितु सार्वभौम की अखण्ड अनन्त शान्ति से सत्य रूपी ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।

 

उनका अत्यन्त प्रसिद्ध समूहगान –

 

“वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे।”

 

गाँधी जी का सत्य रूपी ईश्वर इस ‘पीर’ में निहित है जो दूसरों के मनप्राण,अंतरात्मा की पीड़ा को पहचानता है, वही वास्तव में सत्य की, ईश्वर की, प्रभु ,जगदीश्वर की उपासना कर सकता है। दूसरों के दुःखों को दूर करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है, कोई सत्य नहीं है, सत्य ही वास्तव में ईश्वर है।

 

‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’! ‘सत्यमेव जयते’!

 

मनोज कुमार वशिष्ठ शिक्षाविद, साहित्यकार

रेवाड़ी

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