रामलीला मंच से खेले गए “कफ़न” नाटक की सराहना हो रही चारों ओर

श्यामजी गुप्ता ब्यूरो हरदोई 

स्थानीय कलाकारों समेत शाहजहाँपुर के कलाकारों ने दिखाई कलाकारी

विजय, चंदा, बनवारी, संतो, काका, अभय महेंद्र, मधुप मिश्रा, ने निभाई भूमिका

अरुण अग्निहोत्री एवं पुष्पेन्द्र मिश्रा के निर्देशन में हुआ सफल मंचन

शाहाबाद(हरदोई) 29 सितम्बर। श्री रामलीला मेला समिति मोहल्ला पठकाना द्वारा आयोजित “कफन” नामक नाटक का ऐसा सफल मंचन हुआ कि उसकी सराहना का शोर चारों ओर सुनाई दे रहा है।

स्थानीय कलाकारों समेत शाहजहाँपुर के कलाकारों ने दर्शकों को मन्त्रमुग्ध कर देने बाली ऐसी हृदयभेदी कलाकारी दिखाई कि तमाम दर्शक भावुक हो गए। बहुत से दर्शकों के नयन नाटक के दृश्यों पर अश्रुपूरित दृष्टव्य हुए। रामलीला मंच से खेला गया कफ़न नाटक इतना ममस्पर्शी था कि बहुत से दर्शकगण अपने आँसू रोंक नहीं सके। कफ़न नाटक देखते – देखते महिलाएं रोने लगीं, नौनिहाल कभी नाटक की ओर टकटकी बांधकर देख रहे थे तो कभी अपनी माँ को रोते देखकर उनके आँसू पोंछते हुए पूँछ रहे थे कि आप क्यों रो रहीं हैं। बहुत ही मार्मिक नाटक खेला जा रहा था, स्थानीय कलाकार मधुप मिश्रा की कलाकारी पर कहीं बच्चे किलकारी कर रहे थे तो कहीं महिलाएं गंभीर थीं तो कहीं किसी के नयन अश्रुपूरित थे। कलाकार विजय, चंदा, बनवारी, संतो, काका, अभय महेंद्र की भूमिका पर कोई हंस रहा था तो कोई गंभीर था तो कोई ठहाका लगा रहा था और कोई दांतों तले ऊँगलियां दबा रहा था। यद्वपि प्यार मोहब्बत के बीच बीच हो रहे मंचन पर दर्शकगण भाव विभोर थे, बच्चे किलकारी कर रहे थे, अल्हड़ पीढ़ी मन ही मन आल्हादित थी, हालांकि रामलीला मंच पर नाटक के कई दृश्य फूहड़तापूर्ण मंचन के रूप में चर्चित होकर रह गए हैं। इसी क्रम में जब मधुप मिश्रा मंच पर पड़े अपने नाटकरूपी बीमार मरणासन्न अबोध बच्चे हेतु अपनी नाटकीय पत्नी के करुण प्रलाप पर अत्यंत पीड़ित होकर प्रलाप करते हुए कभी झोली फैलाकर दवा के लिए भीख मांग रहे थे तो कभी पलंग पर पड़े बच्चे के पास भूख प्यास से तड़प तड़पकर प्रलाप कर रही अपनी नाटकीय पत्नी की ओर देख देखकर “भूखे गरीब की ए ही दुआ है, औलाद बालों फूलो फलो” गाना गाते हुए दर्शकों से रोटी, रुपया मांग रहे थे, और तमाम दर्शक भावुक होकर बढ़ बढ़कर उनकी झोली में रुपया रोटी डाल भी रहे थे तो उस समय वास्तव में कहीं पर दर्शकों के कलेजे काँप रहे थे तो कहीं पर स्वाभाविक ही लोग जीवन की सच्चाई का अनुभव कर रहे थे और अपने एवं अपने आसपास के लोगों के कृत्यो एवं कुत्सित कृत्यों पर मन ही मन विचार कर रहे थे। मौके पर मंच के सामने बैठे कुछ गरीब, निरीह, असहाय दर्शकगण नाटक पर टकटकी बांधे अपने एवं अपने बच्चों के भविष्य के बारे में भी सोंचते हुए परिलक्षित हो रहे थे। न जाने किस – किस दर्शक के दिमाग में नाटक के दृश्य देखकर क्या क्या उमड़ घुमड़ रहा था। ऐसा अविस्मरणीय मंचन जो कि एक ऐसी कहानी पर आधारित था, जिस पर सोंचने के लिए तत्समय प्रत्येक दर्शक विवश था। भले घोर कलियुग के दुष्प्रभाव के कारण उसका असर समाज के सबल वर्ग पर कदापि नहीं पड़ सकता। परन्तु सच्चाई से परे पूरी मौज मस्ती के साथ जीवन यापन करने बाले परिवारों के अतिरिक्त व्यक्तियों के लिए यह नाटक वास्तव में पर्याप्त प्रेरक था। समाज के समृद्धशाली लोगों समेत अधिकारीगणों सहित नेतागण भी यदि कभी ऐसे नाटकों से किंचित मात्र तक सीख लेते तो काफी कुछ सुधार समाज को नित नई तरक्की की ओर अग्रसर कर सकता है। परन्तु वह इससे सबक लेना नहीं चाहते क्योंकि उनके कलेजों में कल्मश की काई जम चुकी है अन्यथा सरकारी योजनाओं का लाभ ही यदि पात्रों को कर्तव्यनिष्ठा की कसौटी पर पूरी तन्मयता से प्राप्त करा दिया जाए तो भी कफ़न नाटक का मंचन समाज के निरीह वर्ग तक सफल होकर रह सकता है। स्थानीय कलाकार एवं समिति के बिशेष सहयोगी अरुण अग्निहोत्री के निर्देशन एवं पुष्पेन्द्र मिश्रा के सहयोग से कफ़न नाटक का मनभावन मंचन सफल हुआ है। शाहाबाद के मोहल्ला पठकाना की 88 वें बर्ष की रामलीला का है यह पूरा मामला है।

 

 

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