गणेश चतुर्थी के दिन भूलकर भी न देखें चंद्रमा, भगवान श्री कृष्ण को देखने पर लगा था चोरी का कलंक

गोपाल चतुर्वेदी ब्यूरो चीफ मथुरा

गणेश चतुर्थी का पर्व देशभर में 7 सितंबर को मनाया जाएगा। गणेश चतुर्थी का यह पर्व बहुत ही धूमधाम से देशभर में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी का पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन मनाया जाता है। इसे कलंक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। गणेश चतुर्थी का उत्सव कम से कम 10 दिनों तक चलता है। ऐसी मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए। आइए जानते हैं क्या कारण है कि गणेश चतुर्थी के दिन नहीं करने चाहिए चंद्रमा के दर्शन।

 

*गणेश चतुर्थी पर क्यों नहीं करते चंद्रमा के दर्शन?*

 

गणेश चतुर्थी के दिन यदि चंद्रमा के दर्शन भूलकर भी नहीं करने चाहिए। ऐसा करना बहुत ही अशुभ संकेत माना जाता है। इस जिन यदि कोई चंद्रमा के दर्शन कर लेता है तो उसे अपने जीवन में कई सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। मिथ्या दोष लगने पर आपके जीवन में दिक्कतें आने लगती हैं। साथ ही इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से आप पर कोई कलंक, झूठा आरोप लग सकता है।

 

*गणेशजी ने क्यों दिया था चंद्रमा को श्राप*

 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार गणेशजी मूषक पर सवार होकर जा रहे थे। उनके हाथ में बहुत सारे लड्डू थे। इस दौरान अपने भारी वजन के कारण वह लड़खड़ा कर गिर गए। ऐसे में चंद्रदेव उन्हें देखकर हंसने लगे। यह सब देखकर गणेशजी को बड़ा क्रोध आया और वह अपमानित महसूस करने लगे। तब गुस्से में गणेशजी ने चंद्रदेव को श्राप दे दिया। गणेशजी ने चंद्रदेव से कहा कि तुम्हें अपने रूप पर बड़ा घमंड है न इसलिए मैं तुम्हें क्षय होने का श्राप देता हूं। गणेशजी के श्राप के प्रकोप के कारण चंद्रमा का तेज हर दिन क्षय होने लगा और वह मृत्यु की तरफ बढ़ने लगे।

भगवान शिव ने बचाई चंद्रदेव की जान

भगवान शिव ने बचाई चंद्रदेव की जान

इसके बाद सभी देवताओं ने चंद्र देव से कहा कि तुम शिवजी की तपस्या करो। इसके बाद चंद्रदेव ने गुजरात के समुद्र तट पर शिवलिंग बनाकर तपस्या की। चंद्रदेव की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें अपने सिर पर स्थान दिया और उन्हें मृत्यु से बचा लिया। जिस जगह चंद्र देव ने प्रार्थना की थी उस स्थान पर भगवान शिव चंद्र देव की प्रार्थना पर ज्योर्तिलिंग रूप में पहली बार प्रकट हुए थे और वह स्थान सोमनाथ कहलाया था।

 

*चंद्रदेव ने मांगी गणेशजी की क्षमा*

 

इन सबके बाद चंद्रदेव से गणेशजी से भी क्षमा मांगी तब गणेशजी ने कहा कि मैं आपके श्राप को खत्म तो नहीं कर सकता हूं लेकिन, अब आप हर दिन क्षय होंगे और 15 दिन बाद आप फिर से रोशन होने लगेंगे और पूर्ण हो जाएंगे। लोग आपके दर्शन हर दिन कर पाएंगे लेकिन, भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन जो भी व्यक्ति आपके दर्शन करेगा उसको कलंक का सामना करना पड़ेगा। उस पर झूठा आरोप लग सकता है।

*कृष्ण जी पर भी लगा था झूठा आरोप*

कथाओं के अनुसार, एक बार जरासंध के कारण श्री कृष्ण समुद्र के बीच नगरी बसाकर रहने लगे। जिसे आजकल द्वारकापुरी के नाम से जाना जाता है। द्वारका में रहने वाले सत्राजित यादव ने सूर्यनारायण की आराधना की। उसकी आराधना से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने अपनी एक मणि उसे दे दी। जो नित्य आठ भार सोना देती थी।

 

*शेर ने किया प्रसेनजित का वध*

 

मणि लेकर जब सत्राजित समाज के बीच पहुंचा तो भगवान कृष्ण ने मणि को पाने की इच्छा जाहिर की। लेकिन, सत्राजित ने वह मणि अपने भाई को दे दी। सत्राजित का भाई प्रसेनजित एक बार शिकार पर गया। वहां, शेर ने उसे मार दिया और उसकी मणि लेकर चला गया। वहीं, दूसरी तरफ रीछों का राजा जामवंत उस शेर पर मारकर मणि को लेकर एक गुफा में चला गया।

 

*सत्राजित ने लगाया आरोप भगवान कृष्ण पर आरोप*

 

जब काफी दिन बीत गए और प्रसेनजित वापस नहीं लौटा तो सत्राजित को बहुत ही दुख हुआ। सत्राजित के मन में वहीं ख्याल आया जब श्री कृष्ण ने मणि मांगी थी। तो उसके मन में ख्याल आया कि श्री कृष्ण ने ही मणि को प्राप्त करने के लिए उसके भाई का वध कर दिया होगा। बिना किसी सबूत के उसने नगर भर में प्रचार कर दिया कि श्री कृष्ण ने प्रसेनजित को मारकर मणि छीन ली।

 

*मणि ढूंढने के लिए जंगल में पहुंचे श्रीकृष्ण*

 

लोक निंदा के निवारण के लिए श्रीकृष्ण लोगों के साथ मिलकर प्रसेनजित को ढूंढने के लिए वन में गए। वहां, जाकर उन्हें प्रसेनजित को शेर द्वारा मार डालने के चिन्ह मिलें। इसके बाद वह आगे बढ़ें तो उन्हें शेर को रीछ द्वारा मारने के चिह्न प्राप्त हुए। रीछ के निशानों को खोजते खोजते वह गुफा के भीतर चले गए। गुफा में जाकर उन्होंने देखा कि जामवंत की पुत्री मणि के साथ खेल रही है। जामवंत ने जैसी ही श्रीकृष्ण को देखा वह युद्ध के लिए तैयार हो गया। गुफा के बाहर भगवान कृष्ण के साथियों ने कम से कम 7 दिनों तक प्रतीक्षा की। इसके बाद वह लोग वापस लौट गए। उन्हें लगा कि श्रीकृष्ण का वध हो गया है। उधर दूसरी तरफ 21 दिन तक श्रीकृष्ण और जामवंत का युद्ध चला। जामवंत जब श्री कृष्ण को हरा न सका तो उसने सोचा कि कहीं, यह वहीं अवतार तो नहीं जिसके लिए मुझे भगवान राम ने वरदान दिया था। उसके बाद जामवंत ने अपनी कन्या का विवाह श्री कृष्ण के साथ कर दिया और मणि को दहेज में दे दी।

 

भगवान कृष्ण जब मणि लेकर वापस द्वारका आए तो। सत्राजित बहुत लज्जित हुआ। लज्जा से मुक्त होने के लिए उसने अपनी पुत्री का विवाह श्री कृष्ण के साथ कर दिया। कुछ समय बाद श्री कृष्ण किसी काम से इंद्रप्रस्थ चले गए। तब अक्रूर और शतधन्वा ने सत्राजित का वध करके मणि छीन ली। सत्राजित की मौत के बारे में जैसे ही भगवान कृष्ण के पता चला वह तुरंत द्वारका वापस लौट आए। इसके बाद शतधन्वा से मणि वापस लाने के लिए श्रीकृष्ण और बलराम दोनों निकल गए। उधर शतधन्वा ने मणि अक्रूर को दे दी जिसने उसे यह सब करने की सलाह दी थी। श्रीकृष्ण ने शतधन्वा का पीछा कर उसे मार को डाला लेकिन, मणी उन्हें वापस नहीं मिल पाई। उन्होंने बलराम को सारी बात बताई बलराम को इसपर विश्वास नहीं हुआ और वह विदर्भ चले गए। श्री कृष्ण जब द्वारका वापस लौटे तो लोगों ने उनका खूब अपमान किया। तत्काल यह समाचार फैल गया कि मणि के लोभ में श्रीकृष्ण ने अपने भाई को त्याग दिया। भगवान कृष्ण इसके बाद शोक में डूब गए। तब नारदजी वहां आए। उन्होंने श्री कृष्ण को बताया कि आपने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन करने के कारण आपको इस तरह अपमानित होना पड़ा है।

 

इसलिए गणेश चतुर्थी के दिन भूलकर भी चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए। यदि आपने दर्शन कर लिए तो आप पर झूठा कलंक भी लग सकता है। इसलिए इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से बचना चाहिए।

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