रक्षा बंधन के पवित्र पर्व का जानें महत्व

गोपाल चतुर्वेदी ब्यूरो चीफ मथुरा

 

येन बद्धो बलि राजा,दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:

 

राखी के त्योहार का एक पौराणिक मंत्र है जिसे पूजा के समय पुरोहित और कलाई पर राखी बांधते समय बहन बोलती हैं। यह मंत्र है- ‘येन बद्धो बलि राजा,दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:।

राखी के इस मंत्र का अर्थ है- जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबंधन से मैं तुम्हें बांधता हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा| हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।

 

धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षासूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहत अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं। इसके बाद पुरोहित रक्षासूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।

इस मंत्र से संबंधित कथा वामन पुराण, भविष्य पुराण, विष्णु पुराण में मिलती है। राजा बली बहुत दानी राजा थे और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त भी थे। एक बार उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। इसी दौरान उनकी परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु वामनावतार लेकर आए और दान में राजा बलि से तीन पग भूमि देने के लिए कहा। लेकिन उन्होंने दो पग में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया। इस पर राजा बलि समझ गए कि भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं।

तीसरे पग के लिए उन्होंने भगवान का पग अपने सिर पर रखवा लिया। फिर उन्होंने भगवान से याचना की कि अब तो मेरा सबकुछ चला ही गया है, प्रभु आप मेरी विनती स्वीकारें और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें। भगवान ने भक्त की बात मान ली और बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए। उधर देवी लक्ष्मी परेशान हो गईं। फिर उन्होंने लीला रची और गरीब महिला बनकर राजा बलि के सामने पहुंचीं।

राजा बलि नें महिला का गरीबी देखकर उन्हें अपने महल में रख लिया और बहन की तरह उनकी देखभाल करने लगा। श्रावण पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी ने जो एक एक गरीब महिला के रूप में थीं राजा बलि की कलाई में एक कच्चा धागा बंध दिया। राजा बलि ने बलि ने कहा कि आपने बहन के तौर पर मेरी कलाई में यह रक्षासूत्र बांधा है तो मैं आपको कुछ देना चाहता हूं, आपकी जो इच्छा हो मांग लीजिए। इस पर देवी लक्ष्मी अपने वास्तविक रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्हें ही लेने आई हूं। मैं अपने पति भगवाव विष्णु के बिना बैकुंठ में अकेली हूं। महिला की सच्चाई जानने के बाद भी राजा बलि धर्म के पथ पर कायम रहे और वचन के अनुसार राजा बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ जाने दिया। जाते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे। यह चार महीना चर्तुमास के रूप में जाना जाता है जो देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठानी एकादशी तक होता है।

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